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आध्यात्मिक विचार - 09-09-2011
स्वयं के हित की भावना स्वार्थ कहलाता है, स्वार्थ के त्याग होने पर ही प्रेम होता है।
प्रेम जब अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच जाता है तब समर्पण होता है, समर्पण हुए बिना आध्यात्मिक पथ पर प्रवेश असंभव होता है।
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