आध्यात्मिक विचार - 21-5-2012
संसार में न कोई किसी का मित्र होता है और न ही किसी का शत्रु होता है।
जो व्यक्ति तन से कभी अपने कर्तव्य-कर्मों का विरोध नहीं करता है और मन से निरन्तर भगवान का स्मरण करता है, वह व्यक्ति स्वयं का मित्र होता है।
जो व्यक्ति मन से अपने कर्तव्य-कर्म का विरोध करता है और तन से भगवान की उपासना में लगा होता है वह व्यक्ति स्वयं का ही शत्रु होता है।
आध्यात्मिक विचार - 4-5-2012
प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी कार्य का आरम्भ यह विचार करके ही करना चाहिये कि कार्य के अंत होने पर ही विश्राम करुंगा, अन्यथा वह कार्य ही उस व्यक्ति का अंत कर देता है।
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