संसार में कोई भी कार्य न तो कभी अच्छा होता है और न ही कभी बुरा होता है, केवल व्यक्ति की भावना ही अच्छी और बुरी होती हैं।
जब व्यक्ति बुरी भावना से किसी भी कार्य को करता है, तब वह कार्य पाप कर्म बन जाता है।
जब व्यक्ति अच्छी भावना से उसी कार्य को करता है, तब वही कार्य पुण्य कर्म में परिवर्तित हो जाता है।
जब व्यक्ति कृष्ण भावना में स्थित होकर उसी कार्य को करता है, तब वही कार्य भक्ति-कर्म में परिवर्तित हो जाता हैं।