संसार में सभी मनुष्य एक समय में आसुरी या दैवीय स्वभाव में स्थित होकर ही कार्य करते है।
जब व्यक्ति स्वयं के हित की भावना से कार्य करता है, तब वह आसुरी स्वभाव में स्थित होता है।
जब व्यक्ति दूसरों के हित की भावना से कार्य करता है, तब वह दैवीय स्वभाव मे स्थित होता है।