अमृत-तत्व (अमृत्व) और मृत-तत्व (मृत्यु) दोनों तत्व प्रत्येक मनुष्य के शरीर में ही स्थित होते हैं।
जो व्यक्ति स्वयं को शरीर समझकर और कर्ता भाव में स्थित होकर कर्म करता है, वह व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होता है।
जो व्यक्ति स्वयं को आत्मा समझकर और साक्षी भाव में स्थित होकर कर्म करता है, वह व्यक्ति अमृत्व को प्राप्त होता है।