कर्म की विधि का ज्ञान न होने के कारण "जीवात्मा" यानि चेतन प्रकृति बार-बार "शरीर" यानि ज़ड़ प्रकृति की सुख-दुख के भंवर में फंसी रहती है।
इसलिये व्यक्ति को सतगुरू के शरणागत होकर अपने स्वयं लिये निश्चित की हुई कर्म की विधि को निर्मल मन से जानने की जिज्ञासा करनी चाहिये।