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आध्यात्मिक विचार - 03-08-2014
मित्र की खुशी को स्वयं की खुशी समझना ही मित्र-धर्म कहलाता है, इस धर्म को मानने वाले का संसार में कोई शत्रु नहीं होता है।
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