आध्यात्मिक विचार - 26-09-2011


प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही शिष्य और स्वयं ही गुरु होता हैं।

जब व्यक्ति अपने से बड़ों के अनुभव को समझने का प्रयत्न करता है, तब वह व्यक्ति शिष्य होता है। 

जब व्यक्ति अपने से छोटों को अपने अनुभव को बताने का प्रयत्न करता है, तब वह व्यक्ति गुरु होता है।