संसार में बुद्धिमान व्यक्ति वह होता है, जो स्वयं के अनुभव से स्वयं शिक्षा ग्रहण करता है।
जो व्यक्ति स्वयं के द्वारा लिखा गये शब्दों को स्वयं पढ़कर या स्वयं के द्वारा बोले गये शब्दों को स्वयं सुनकर समझने का प्रयत्न करता है, वह व्यक्ति स्वयं निरन्तर अध्यन (स्वध्याय) करता हुआ एक दिन भगवान की कृपा से स्वयं को जान लेता है।
जो व्यक्ति भगवान की कृपा से स्वयं को जान लेता है, उस व्यक्ति के लिये संसार में जानने के लिये कुछ भी शेष नहीं रहता है।