जिस ज्ञान से व्यक्ति को वास्तविक स्वरूप की अनुभूति होती है, उस व्यक्ति के लिये केवल वही वास्तविक ज्ञान होता है।
जन्म से सभी मनुष्य वास्तविक स्वरूप से अनभिज्ञ होने के कारण, स्वप्न के समान संसार को ही वास्तविक संसार समझते रहते हैं।
जब जिस व्यक्ति को भगवान की कृपा पात्रता हासिल होती है, तब उस व्यक्ति को स्वतः सत्संग प्राप्त होता है, और तभी व्यक्ति को वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होता है।
जब व्यक्ति को वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो जाता है तब वह व्यक्ति वास्तविक स्वरूप में स्थित होकर मुक्त हो जाता है।