संसार में सभी व्यक्ति ज्ञान से परिपूर्ण होते हैं लेकिन उनका ज्ञान अज्ञान से आवृत रहता है।
जिस प्रकार दर्पण धूल से ढ़क जाता है, उसी प्रकार सभी व्यक्तियों का ज्ञान कामनाओं से ढ़क जाता है।
जब कोई व्यक्ति स्वार्थ की भावना त्यागकर, निरन्तर कर्म करता है, तब उस व्यक्ति के ज्ञान पर से कामनाओं का आवरण स्वतः ही हटने लगता है, और ज्ञान सूर्य के सामान स्वयं प्रकट हो जाता है।