पुरुषार्थ से ही लक्ष्य की प्राप्ति संभव होती है।
प्रत्येक व्यक्ति को पुरूषार्थ के साथ-साथ प्रभु की भक्ति का सहारा भी अवश्य लेते रहना चाहिये, क्योंकि प्रभु की भक्ति से ही मन की शुद्धि संभव होती है और मन की शुद्धि होने पर ही विषय-आसक्ति का त्याग संभव होता है।
विषय-आसक्ति के त्याग होने पर ही परम-लक्ष्य आनन्द स्वरूप कृष्णा की प्राप्ति संभव होती है।