आध्यात्मिक विचार - 20-10-2013
प्रत्येक व्यक्ति हमारे स्वयं लिये दर्पण के समान होता है, दर्पण हमें वही दिखलाता है जैसा हम स्वयं होते हैं, संसार में सभी व्यक्तियों में गुण और दोष एक समान रूप में स्थित रहते हैं।
जिस वक्त हम किसी व्यक्ति की अच्छाई का वर्णन करते हैं उस वक्त हमारे अन्दर गुणों की प्रधानता होती है, तब हमारे द्वारा अच्छा कर्म हो रहा होता है।
जिस वक्त हम किसी व्यक्ति की बुराई का वर्णन करते हैं उस वक्त हमारे अन्दर दोषों की प्रधानता होती है, तब हमारे द्वारा बुरा कर्म हो रहा होता है।
आध्यात्मिक विचार - 20-04-2013
विशुद्ध प्रेम से ही परमात्मा की प्राप्ति संभव।
विशुद्ध प्रेम न तो बढ़ता है और न ही घटता है, जो प्रेम बढ़ता है वह "राग" होता है और जो प्रेम घटता है वह "द्वेष" होता है।
जिस व्यक्ति का न तो किसी वस्तु से "राग" होता है और न ही किसी वस्तु से "द्वेष" ही करता है, ऎसा सम-भाव में स्थित व्यक्ति ही परमात्मा को प्राप्त होता है।
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