आध्यात्मिक विचार - 30-09-2011


प्रत्येक व्यक्ति वास्तविक ज्ञान से परिपूर्ण है।

प्रत्येक व्यक्ति के वास्तविक ज्ञान पर अज्ञान का आवरण रहता है। 

प्रत्येक व्यक्ति को अज्ञान के आवरण को हटाने वाले ज्ञान की आवश्यकता है।

अज्ञान का आवरण हट जाने पर प्रत्येक व्यक्ति का वास्तविक ज्ञान सूर्य के समान स्वयं ही प्रकट हो जाता है।

आध्यात्मिक विचार - 29-09-2011

जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति का शरीर भोजन से संतुष्ट होता है, उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा परमात्मा के भजन से संतुष्ट होती है।

आध्यात्मिक विचार - 26-09-2011


प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही शिष्य और स्वयं ही गुरु होता हैं।

जब व्यक्ति अपने से बड़ों के अनुभव को समझने का प्रयत्न करता है, तब वह व्यक्ति शिष्य होता है। 

जब व्यक्ति अपने से छोटों को अपने अनुभव को बताने का प्रयत्न करता है, तब वह व्यक्ति गुरु होता है। 

आध्यात्मिक विचार - 25-09-2011

ज्ञान के द्वारा जब ज्ञान और वैराग्य का अहंकार, भक्ति में समाहित हो जाता है तभी वास्तव में भगवद पथ की दूरी तय होती है।

आध्यात्मिक विचार - 19-09-2011


जिस व्यक्ति का आध्यात्मिक ज्ञान व्यावहारिक ज्ञान में परिवर्तित हो जाता है, केवल वही व्यक्ति दूसरों को आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा देने का अधिकारी होता है।

जो व्यक्ति अधिकारी हुए बिना दूसरों को आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा देने की भावना रखता है, ऎसा व्यक्ति अपने पतन के मार्ग की ओर ही चलता है।

आध्यात्मिक विचार - 17-09-2011

आलस्य के कारण व्यक्ति विद्या प्राप्त नही कर पाता है, बिना विद्या के धन की प्राप्ति नही होती है, निर्धन मनुष्य का कोई मित्र नही होता है, और बिना मित्र के सुख की प्राप्ति असंभव होती है।  

आध्यात्मिक विचार - 16-09-2011


धन के लिये व्यक्ति को अपने चरित्र को नष्ट नहीं करना चाहिये, धन तो प्रारब्ध के अनुरुप आता-जाता रहता है। 

धन के नष्ट हो जाने से व्यक्ति का कभी नाश नहीं होता है, परन्तु चरित्र के नष्ट हो जाने से व्यक्ति का सम्पूर्ण नाश हो जाता है।

आध्यात्मिक विचार - 15-09-2011


जिस व्यक्ति का लक्ष्य वर्तमान जीवन न होकर अगला जीवन होता है वही दूर दृष्टि वाला होता है।

वर्तमान जीवन यात्रा की तैयारी तो हम सभी करके आये हैं, इस जीवन यात्रा को करते हुये हमारी अगली जीवन यात्रा की तैयारी चल रही है।

आध्यात्मिक विचार - 14-09-2011


संसार में कोई भी व्यक्ति न किसी का मित्र  होता है, और न ही किसी का शत्रु होता है, पूर्व जन्मों के कर्म के कारण ही एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से मित्रता और शत्रुता निभाता प्रतीत होता है।

संसार में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं का ही मित्र होता है, और स्वयं का ही शत्रु होता है। जिस व्यक्ति का मन उसके वश में हो जाता है वह स्वयं का मित्र बन जाता है। जो व्यक्ति अपने मन के अधीन होता है वह व्यक्ति स्वयं का शत्रु होता है।

आध्यात्मिक विचार - 12-09-2011


मैं परमात्मा का अंश आत्मा हूँ, और मेरा एक मात्र परमात्मा है। 

जो व्यक्ति इस तत्व को जानकर ग्रहण कर लेता है तो उस व्यक्ति के लिये संसार में जानने के लिये कुछ भी शेष नहीं रहता है।  

यही सम्पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान है, इसके आगे मनुष्य को जानने के लिये अन्य कोई ज्ञान नहीं हैं।

आध्यात्मिक विचार - 10-09-2011


किसी भी व्यक्ति की सुन्दरता उसके चेहरे से दिखाई देती है, चेहरे की सुन्दरता उसके चरित्र से दिखाई देती है, चरित्र की सुन्दरता उसके गुणों से दिखाई देती है, गुणों की सुन्दरता उसके ज्ञान से दिखाई देती है, और ज्ञान की सुन्दरता उसकी क्षमाशीलता से दिखाई देती है।

आध्यात्मिक विचार - 09-09-2011


स्वयं के हित की भावना स्वार्थ कहलाता है, स्वार्थ के त्याग होने पर ही प्रेम होता है। 

प्रेम जब अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच जाता है तब समर्पण होता है, समर्पण हुए बिना आध्यात्मिक पथ पर प्रवेश असंभव होता है। 

आध्यात्मिक विचार - 07-09-2011

जो व्यक्ति मन से स्वार्थ की भावना का त्याग कर देता है, वही वास्तव में वैरागी होता है।

आध्यात्मिक विचार - 05-09-2011


केवल सकारात्मक सोच के द्वारा ही जीवन संतुलित हो सकता हैं, जब जीवन संतुलित हो जाता है तभी वास्तविक कर्म प्रारम्भ होता है।

आध्यात्मिक विचार - 01-09-2011


जिस व्यक्ति में जितनी अधिक कामनायें होती है, वह व्यक्ति उतना ही निर्धन होता है, और जिस व्यक्ति में जितनी कम कामनायें होती है, वह व्यक्ति उतना ही अमीर होता है। 

लेकिन जो व्यक्ति हर परिस्थिति में संतुष्ट रहता है, उस व्यक्ति की दृष्टि में संसार में न तो कोई अमीर होता है, और न ही कोई निर्धन होता है।