संसार में जो व्यक्ति जिस अनुपात में समझने की भावना रखता है, वह व्यक्ति उसी अनुपात में बुद्धिमान होता हैं, और जो व्यक्ति जिस अनुपात में दूसरों को समझाने की भावना रखता है, वह व्यक्ति उसी अनुपात में मूर्ख होता है।
जो व्यक्ति दूसरों के मन को जानने की जिज्ञासा का त्याग करके केवल स्वयं के मन को जानने की निरन्तर जिज्ञासा करता है, केवल वही व्यक्ति भक्ति-योग में स्थित हो पाता है।