आध्यात्मिक विचार - 20-12-2014


सच्चे मन से की जाने वाली आत्म-ग्लानि उस अग्नि के समान होती है जिसमें बड़े से बड़े पाप भी जलकर भस्म हो जाते हैं।

आध्यात्मिक विचार - 13-12-2014


प्राप्त वस्तुओं से अधिक प्राप्त करने की लालसा "लोभ" कहलाती है, "लोभ" त्यागने के पश्चात ही व्यक्ति का अमीर बन पाना संभव होता है।

आध्यात्मिक विचार - 02-12-2014


सामर्थ्यवान होते हुए दूसरों की गल्तियों को क्षमा करने पर ही महापुरुषों की श्रेणी में स्थित हो पाना संभव होता है। 

आध्यात्मिक विचार - 18-11-2014


संत की पहिचान सांसारिक और आध्यात्मिक दो दृष्टिकोणों से होती है।

जो व्यक्ति स्वयं कष्ट झेलकर दूसरों को सुख देने का निरन्तर प्रयत्न करता है, ऎसे व्यक्ति की पहिचान सांसारिक दृष्टिकोण से संत रूप में होती है।

जिस व्यक्ति की समस्त कामनायें परमात्मा का स्पर्श प्राप्तकर शान्त हो चुकी हैं, ऎसे व्यक्ति की पहिचान आध्यात्मिक दृष्टिकोण से संत रूप में होती है।

आध्यात्मिक विचार - 15-11-2014


मनुष्य कर्म करने मे सदैव स्वतंत्र होता है, जो व्यक्ति किसी के कर्म में हस्तक्षेप नहीं करते हैं, और किसी के हस्तक्षेप करने पर विचलित नहीं होते हैं, ऎसे व्यक्ति बुद्धिमानों में श्रेष्ठ होते हैं।


आध्यात्मिक विचार - 06-10-2014

अपने कर्तव्यों का ज्ञान न होने के कारण मनुष्य अधर्म के पथ पर ही चलता है।

मनुष्य के जीवन में जब-जब वस्तुओं का महत्व बढ़ने लगता है, तब-तब संबन्धों का महत्व कम होने लगता है, और जब संबन्धों पर वस्तुओं का महत्व अधिक हो जाता है, तभी मनुष्य अपने कर्तव्यों से विमुख होकर अधर्म के पथ पर चलने लगता है।

आध्यात्मिक विचार - 18-09-2014

प्रसन्नता पूर्वक अपमान सहन करने से और निरन्तर नम्रता धारण करने से मिथ्या अहंकार का मिटना संभव होता है।

आध्यात्मिक विचार - 08-08-2014


हम जिनको अपने साथ समझते हैं वास्तव में वह हमारे साथ नहीं होते हैं, हमारे साथ केवल वही होते हैं जिनका हम स्मरण करते हैं।

आध्यात्मिक विचार - 04-08-2014


किसी को भी अपना बनाना असंभव है, लेकिन किसी का हो जाना संभव है। 

जो व्यक्ति किसी एक का भी हो जाता है वह सभी का मित्र बन जाता है और जो सभी का मित्र होता है वही भगवान का भक्त होता है।

आध्यात्मिक विचार - 03-08-2014

मित्र की खुशी को स्वयं की खुशी समझना ही मित्र-धर्म कहलाता है, इस धर्म को मानने वाले का संसार में कोई शत्रु नहीं होता है। 

आध्यात्मिक विचार - 20-07-2014

"उदारता" जल से भी अधिक तरल होती है। 

जल की तरलता से समस्त प्राणियों को शीतलता प्राप्त होती है लेकिन मनुष्यों की उदारता से तो समस्त संसार को शीतलता प्राप्त होती है।  

आध्यात्मिक विचार - 18-07-2014

क्रोध, अग्नि से भी अधिक ज्वलनशील होता है, अग्नि तो निर्जीव शरीर को भष्म करती है लेकिन क्रोध तो सजीव चरित्र को ही नष्ट कर देता है।

आध्यात्मिक विचार - 16-07-2014

प्राप्त वस्तुओं को भगवान का प्रसाद और अप्राप्त वस्तुओं को भगवान की कृपा समझने वाला व्यक्ति शीघ्र ही जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। 

आध्यात्मिक विचार - 30-06-2014

पद की प्राप्ति सुख को पाने का माध्यम नहीं होता है बल्कि कर्तव्य का निर्वाह करना होता है।

जो व्यक्ति अपने पद का निर्वाह कर्तव्य समझकर करता है तो उस व्यक्ति के जीवन में सुख का कभी अभाव नहीं होता है। 

आध्यात्मिक विचार - 19-06-2014


संसार की सबसे बड़ी शक्ति ब्रह्मास्त्र है, जो प्रत्येक मनुष्य को भगवान के द्वारा प्राप्त है, शब्द "ब्रह्म" स्वरूप बांण के समान होते है और मुख "अस्त्र" स्वरूप धनुष के समान होता है।

जब-जब व्यक्ति अपनी बांणी का प्रयोग अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये करता है तब-तब यह ब्रह्मास्त्र उस व्यक्ति का ही सर्वनाश करता है।

आध्यात्मिक विचार - 28-05-2014


सृष्टि के प्रत्येक कार्य में कल्याण ही छिपा होता है। 

हमारे दुख में स्वयं के सहित अनेकों का सुख छिपा होता है वह सुख तत्काल दिखलाई नहीं देता है, लेकिन विश्वास के साथ धीरज रखने पर कुछ समय के बाद वह सुख प्रकट होने लगता है।   

आध्यात्मिक विचार - 27-05-2014


जो स्वयं को निमित्त समझकर अपने कर्तव्य-कर्म करने में निरन्तर लगा रहता है वह सभी पाप और पुण्य कर्म के बन्धन से शीघ्र मुक्त हो जाता है।

आध्यात्मिक विचार - 25-05-2014


कर्म की विधि का ज्ञान न होने के कारण "जीवात्मा" यानि चेतन प्रकृति बार-बार "शरीर" यानि ज़ड़ प्रकृति की सुख-दुख के भंवर में फंसी रहती है। 

इसलिये व्यक्ति को सतगुरू के शरणागत होकर अपने स्वयं लिये निश्चित की हुई कर्म की विधि को निर्मल मन से जानने की जिज्ञासा करनी चाहिये।


आध्यात्मिक विचार - 22-05-2014


मृत्यु का भय और सुख की इच्छा ही प्रत्येक व्यक्ति के दुखः का मूल कारण होती हैं, जबकि आयु और सुख तो प्रारब्ध (पूर्व जन्म के कर्म-फल) के अनुरूप ही प्राप्त होते हैं। 

मनुष्य शरीर प्रभु कृपा से वर्तमान कर्म के द्वारा अमरता और आनन्द प्राप्ति के लिये ही मिलता है, जबकि आयु और सुख तो मनुष्य शरीर की अपेक्षा अन्य शरीरों में बहुत अधिक मात्रा होते हैं।   

आध्यात्मिक विचार - 21-05-2014


आत्म-विश्वास व्यक्ति को बलवान बनाता है लेकिन जब आत्म-विश्वास के साथ अहंकार जुड़ जाता है तो व्यक्ति दुर्बल हो जाता है।

आध्यात्मिक विचार - 17-05-2014


आँखें व्यक्ति के दिल का आइना होती हैं, आँखों को जो कुछ भी दिखलाई देता है वास्तव में वह उस व्यक्ति के दिल का प्रतिबिम्ब ही होता है। 

आध्यात्मिक विचार - 15-05-2014


जिसप्रकार कैदी जेल के नियमों का पालन किये बिना जेल से मुक्त नहीं हो सकता है, उसीप्रकार व्यक्ति शास्त्रों में वर्णित नियमों का पालन किये बिना जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त नहीं हो सकता है। 

आध्यात्मिक विचार - 07-5-2014


अपने यात्री स्वरूप को जानकर, जीवन रूपी नौका में सवार रहते हुए, "धीरज और विश्वास" रूपी पतवारों के सहारे विचरण करने वाला व्यक्ति संसार रूपी सागर से आसानी से पार हो जाता है।  

आध्यात्मिक विचार - 03-5-2014


जीवन में जब सुखः मिलें, तब समझना चाहिये कि अच्छे कर्मों का फल मिल रहा है।
और 
जीवन में जब दुखः मिलें, तब समझना चाहिये कि अच्छे कर्मों को करने का वक्त आ गया है।

आध्यात्मिक विचार - 27-4-2014


इन्द्रियों को वश में करना वायु को वश में करने के समान हैं।

जिस व्यक्ति की बुद्धि निरन्तर समर्पण भाव में स्थित रहती है, उस व्यक्ति की इन्द्रियाँ शीघ्र ही वश में हो जाती हैं। 

आध्यात्मिक विचार - 8-04-2014


दूसरों के सुख का विचार रखने वाला व्यक्ति ही धर्म का आचरण करने वाला होता है और दूसरों को कष्ट देने का विचार रखने वाला व्यक्ति अधर्म का आचरण करने वाला ही होता है।

आध्यात्मिक विचार - 16-03-2014

असंभव को संभव बनाने का प्रयत्न करना ही व्यक्ति के दुख का मूल कारण होता है।

जिस प्रकार किसी के हो जाना संभव है, लेकिन किसी को अपना बनाना असंभव है।

आध्यात्मिक विचार - 25-02-2014


दूसरों के हित के लिये किये जाने वाला पाप-कर्म भी पुण्य होता है, और दूसरों के अहित के लिये किये जाने वाला पुण्य-कर्म भी पाप होता है।

आध्यात्मिक विचार - 22-02-2014


कर्म केवल वही होता है जो व्यक्ति को कर्म-बन्धन से मुक्त करता है।

परिणाम की इच्छा के बिना किये जाने वाले कर्मों से ही कर्म-बन्धन से मुक्ति संभव होती है।

परिणाम की कामना से किये जाने वाले पुण्य कर्मों से तो कर्म-बन्धन की ही उत्पत्ति होती हैं।

आध्यात्मिक विचार - 11-02-2014

प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही अपना मित्र और स्वयं ही अपना शत्रु होता है।

जब व्यक्ति दूसरों के सुखों का विचार करता है तब वह स्वयं का मित्र होता है, जब व्यक्ति अपने सुख का विचार करता है तब वही स्वयं का शत्रु होता है।

आध्यात्मिक विचार - 02-02-2014

स्वयं को प्राप्त ज्ञान को सर्वोच्च ज्ञान समझने वाला व्यक्ति वास्तव में अज्ञानी ही होता है।

आध्यात्मिक विचार - 01-02-2014

सुख और दुख तो बुद्धि की कल्पना मात्र है। 
सहज रूप से प्राप्त वस्तु से मन को सुख की अनुभूति और प्रयत्न करके प्राप्त वस्तु से मन को दुख की अनुभूति होती है।

आध्यात्मिक विचार - 29-01-2014

स्वयं के वास्तविक रूप के ज्ञान के बिना संसार के वास्तविक रूप का ज्ञान संभव नहीं है, इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को संसार को जानने की इच्छा का त्याग करके स्वयं को जानने का प्रयत्न करना चाहिये।

आध्यात्मिक विचार - 10-01-2014


व्यक्ति का वर्तमान स्वभाव ही उसके भविष्य का निर्माता होता है।   

आध्यात्मिक विचार - 03-01-2014


जिस प्रकार दीमक लकड़ी को नष्ट कर देती है। उसी प्रकार, ईर्ष्या व्यक्ति के चरित्र को नष्ट कर देती है।