आँख से अंधे संसार को, कामनाओं से अंधे विवेक को, अभिमान से अंधे अपने से श्रेष्ठ को और लालच से अंधे स्वयं के दोषों को कभी नहीं देख पाते हैं।
जिस प्रकार आंखों से संसार को देखा जाता है उसी प्रकार कामनाओं के त्याग से विवेक को, अभिमान के त्याग से अपने से श्रेष्ठ को, लालच के त्याग से स्वयं के दोषों को देखा जा सकता है।