आध्यात्मिक विचार - 20-04-2013


विशुद्ध प्रेम से ही परमात्मा की प्राप्ति संभव।

विशुद्ध प्रेम न तो बढ़ता है और न ही घटता है, जो प्रेम बढ़ता है वह "राग" होता है और जो प्रेम घटता है वह "द्वेष" होता है। 

जिस व्यक्ति का न तो किसी वस्तु से "राग" होता है और न ही किसी वस्तु से "द्वेष" ही करता है, ऎसा सम-भाव में स्थित व्यक्ति ही परमात्मा को प्राप्त होता है।