धर्म और अधर्म की परिभाषा कार्य का उद्देश्य निर्धारित करता है, एक ही कार्य धर्म और अधर्म दोनों ही हो सकता है।
जब कार्य का उद्देश्य स्वार्थ-सिद्धि होता है तो वह कार्य अधर्म कहलाता है, और जब उसी कार्य को परमार्थ-सिद्धि के उद्देश्य से किया जाता है तो वही कार्य धर्म कहलाता है।
असफलता में व्यक्ति की बुद्धि दिशाहीन हो जाती है, लेकिन जिस व्यक्ति को असफलता में भी दिशा का ज्ञान रहता है वही व्यक्ति सफलता के शिखर को प्राप्त कर पाता है।