आज का विचार
गुरु और सदगुरु में अन्तर होता है, गुरु बनाना होता है लेकिन सदगुरु प्राप्त होते हैं।
गुरु स्वर्ग के लोकों का पथ-प्रदर्शक होता है और सदगुरु बैकुण्ठ के लोकों का पथ-प्रदर्शक होता है।
आज का विचार
जिसप्रकार देश के नियमों का उल्लंघन करने पर व्यक्ति को सरकार के द्वारा दण्डित किया जाता है, उसीप्रकार प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करने पर जीवात्मा को प्रकृति के द्वारा दण्डित किया जाता है।
आज का विचार
नित्य भगवान के भजन, चिंतन के लिये थोड़ा-थोड़ा समय निकाल कर अभ्यास अवश्य करना चाहिये।
जिसप्रकार बूँद-बूँद करके घट भर जाता है, उसीप्रकार थोड़ा-थोड़ा भजन, चिंतन विश्वास और धैर्य के साथ करने से एक दिन पात्रता प्राप्त हो ही जायेगी।
आज का विचार
ईश्वर प्राप्ति के दो ही मार्ग है, निष्काम कर्म-मार्ग और सांख्य-मार्ग, सांख्य-मार्ग की तुलना में निष्काम कर्म-मार्ग आसान होता है।
निष्काम कर्म-मार्ग में मन को पहले स्थिर किया जाता है तो सभी इन्द्रियाँ स्वत: ही वश में हो जाती है और सांख्य-मार्ग में सभी इन्द्रियों को अलग-अलग वश में किया जाता है तब मन वश में हो पाता है।
आज का विचार
भगवान निर्गुण-निराकार स्वरूप भी हैं तो सगुण-साकार स्वरूप भी हैं।
भगवान का निर्गुण-निराकार स्वरुप के चिंतन करने से परमात्मा का सगुण-साकार स्वरुप के चिंतन करना श्रेष्ठ होता हैं।
क्योंकि निर्गुण-निराकार स्वरूप से प्रेम नहीं हो सकता है, प्रेम तो सगुण-साकार स्वरूप से ही हो सकता है और भगवान की प्राप्ति केवल प्रेम से होती है।
क्योंकि निर्गुण-निराकार स्वरूप से प्रेम नहीं हो सकता है, प्रेम तो सगुण-साकार स्वरूप से ही हो सकता है और भगवान की प्राप्ति केवल प्रेम से होती है।
आज का विचार
शास्त्रों के अध्यन से शास्त्रों का सार ग्रहण करना श्रेष्ठ होता है, शास्त्रों के अध्यन से ध्यान श्रेष्ठ होता है, ध्यान से भी सभी कर्म-फ़लों का त्याग करना श्रेष्ठ होता है।
आज का विचार
कर्म बन्धन से मुक्त होना ही भगवान को प्राप्त करने का एक मात्र रास्ता है।
मनुष्य जो कुछ भी कर्म करता है यदि वह उन सभी कर्म-फलों को कर्म करने से पहले ही भगवान को अर्पित करता चलता है तो वह मनुष्य कर्म बन्धन से मुक्त होने लगता है।
आज का विचार
शास्त्रों के अनुसार कर्म करना "धर्म" कहलाता है, शास्त्रों में वर्णित प्रत्येक व्यक्ति के अपने "नियत कर्म" (देश, समय, स्थान, वर्ण और वर्णाश्रम के अनुसार कर्म) को कर्तव्य समझकर करना ही धर्म कहलाता है, धर्म प्रत्येक व्यक्ति का अलग-अलग और निजी होता है, स्वधर्म का पालन करना ही श्रेष्ठ होता है चाहे कितना भी त्रुटि पूर्ण हो।
आज का विचार
जिसप्रकार भौतिक शक्ति प्राप्त करने के लिये भौतिक ज्ञान प्राप्त करने के लिये बच्चे को विधालय में दाखिला लेना होता है, उसीप्रकार आध्यात्मिक शक्ति के लिये आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करने के लिये एक बच्चे के समान सत्संग रूपी विधालय में दाखिला लेना होगा।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)