आध्यात्मिक विचार - 23-12-2012


पुरुषार्थ से ही लक्ष्य की प्राप्ति संभव होती है। 

प्रत्येक व्यक्ति को पुरूषार्थ के साथ-साथ प्रभु की भक्ति का सहारा भी अवश्य लेते रहना चाहिये, क्योंकि प्रभु की भक्ति से ही मन की शुद्धि संभव होती है और मन की शुद्धि होने पर ही विषय-आसक्ति का त्याग संभव होता है।

विषय-आसक्ति के त्याग होने पर ही परम-लक्ष्य आनन्द स्वरूप कृष्णा की प्राप्ति संभव होती है। 

आध्यात्मिक विचार - 16-12-2012


प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में,

भोजन वही करना चाहिये, जिसको शरीर पचा सके।
बोलना केवल वही चाहिये, जिससे हर कोई रीझ सके॥
सम्बन्ध वही बनाना चाहिये, जितना स्वंय से निभ सके।
सुनना केवल वही चाहिये, जिसका स्वयं से आचरण हो सके॥

आध्यात्मिक विचार - 12-12-2012


पाने की खुशी क्यों? 
खोने का ड़र क्यों?

संसार की प्रत्येक वस्तु भगवान की है।

जो वस्तु जिस व्यक्ति के उपयोग की है उस वस्तु का अन्य कोई उपयोग नहीं कर सकता है, और जो वस्तु जिस व्यक्ति के उपयोग की नहीं है उस व्यक्ति की कोई ताकत नहीं है कि वह उस वस्तु का उपयोग कर सके।

आध्यात्मिक विचार - 11-12-2012


जिस प्रकार जब पानी शान्त हो जाता है तो आइना हो जाता है, उसी प्रकार जब व्यक्ति का मन शान्त हो जाता है तो मानव जीवन का परम-लक्ष्य आनन्द स्वरूप कृष्णा मिल जाता है।

आध्यात्मिक विचार - 01-11-2012


संसार एक खेल का मैदान है, जीवन एक खेल है, प्रत्येक जीव यहाँ एक खिलाड़ी है।

जो मनुष्य इस जीवन रूपी खेल के नियमों को जानकर इस खेल को खेलता है वही व्यक्ति बुद्धिमानों में श्रेष्ठ होता है।

आध्यात्मिक विचार - 21-10-2012


प्रत्येक व्यक्ति केवल स्वयं की भावना को ही पहचान सकता है। 

जो व्यक्ति समझाने की भावना से पढ़ता, लिखता, सुनता या बोलता है वह मूर्ख होता है। 

जो व्यक्ति समझने की भावना से पढ़ता, लिखता, सुनता या बोलता है वह बुद्धिमान होता है।

आध्यात्मिक विचार - 15-10-2012


स्वयं को प्राप्त जानकारी को पूर्ण जानकारी समझना प्रत्येक व्यक्ति की कमजोरी होती है।

जो व्यक्ति अपनी इस कमजोरी को दूर कर लेता है, वह व्यक्ति बुद्धिमानों में श्रेष्ठ होता है। 

आध्यात्मिक विचार - 13-10-2012


मनुष्य जीवन का गुजरा हुआ प्रत्येक क्षण शिक्षा देता है। 

स्वयं के अनुभवों से सीख न लेना ही मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी होती है।

जो व्यक्ति इस कमजोरी को दूर कर लेता है, वही व्यक्ति बुद्धिमानों में श्रेष्ठ होता है।

आध्यात्मिक विचार - 10-10-2012


व्यक्ति जैसी संगति करता है वैसे ही विचार बुद्धि में उत्पन्न होते हैं, वैसा ही स्वभाव हो जाता है और वैसा ही कर्म स्वतः ही होने लगता है। 

आध्यात्मिक विचार - 11-9-2012


जो व्यक्ति दूसरों को समझाने का भाव रखता है, वह व्यक्ति स्वयं को कभी समझ नहीं पाता है।

आध्यात्मिक विचार - 1-9-2012


शिष्य भावना में भली प्रकार स्थित व्यक्ति ही सदैव दूसरों के लिये एक अच्छा गुरु होता है।

आध्यात्मिक विचार - 21-8-2012


सभी जीवात्मायें नित्य मुक्त हैं। 

जीवात्मा स्वयं को शरीर समझने के कारण ही मोहग्रस्त हो जाती है, मोहग्रस्त जीवात्मा कर्म बन्धन में स्वयं ही बँध जाती है। 

जिस जीवात्मा को स्वयं के वास्तविक स्वरूप का अनुभव हो जाता है वह जीवात्मा शरीर में रहते हुए भी कर्म के बन्धन से मुक्त रहती है। 

आध्यात्मिक विचार - 19-8-2012


परमतत्व की प्राप्ति तत्वज्ञान से होती है, तत्वज्ञान की प्राप्ति मोह के मिटने पर होती है, वस्तु वैराग्य से मोह मिटता है, वस्तु वैराग्य केवल सत्संग से ही संभव है। 

आध्यात्मिक विचार - 5-7-2012


मनुष्य जीवन का एक मात्र लक्ष्य, परमात्मा से मिलन करना होता है।

जो व्यक्ति जितना अधिक संसार के आश्रित होकर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करता है, वह परमात्मा से उतना ही अधिक दूर होता जाता है।

जो व्यक्ति जितना अधिक परमात्मा के आश्रित होकर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करता है, वह परमात्मा के उतना नजदीक होता जाता है।

आध्यात्मिक विचार - 23-6-2012


केवल वही व्यक्ति भगवान के सच्चे भक्त होते हैं।

जो बीते हुए समय का कभी पश्चाताप नहीं करते हैं, जो भविष्य की चिन्ता नहीं करते हैं।

केवल वर्तमान में ही मन को स्थिर रखकर निरन्तर अपने कर्तव्य कर्म में व्यस्त रहते हैं।

आध्यात्मिक विचार - 22-6-2012


अमृत-तत्व (अमृत्व) और मृत-तत्व (मृत्यु) दोनों तत्व प्रत्येक मनुष्य के शरीर में ही स्थित होते हैं। 

जो व्यक्ति स्वयं को शरीर समझकर और कर्ता भाव में स्थित होकर कर्म करता है, वह व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होता है।

जो व्यक्ति स्वयं को आत्मा समझकर और साक्षी भाव में स्थित होकर कर्म करता है, वह व्यक्ति अमृत्व को प्राप्त होता है।

आध्यात्मिक विचार - 27-5-2012


"काम, क्रोध और लोभ" मनुष्य के तीन प्रमुख शत्रु होते हैं, जो मनुष्य क्रोध और लोभ पर जीत हासिल कर लेता है तब "काम" उस मनुष्य का मित्र बन जाता है।

"लोभ" पर जीत दया की भावना से होती है, और "क्रोध" पर जीत अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थिति में अविचल भावना से होती है। 

आध्यात्मिक विचार - 23-5-2012


दुखों की उत्पत्ति स्वयं के हित की भावना से कार्य करने से होती है, और सुखों की उत्पत्ति दूसरों के हित की भावना से कार्य करने से होती है। 

इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को केवल अपनी भावना को जानने का प्रयत्न करना चाहिये, वह किस भावना से कार्य कर रहा है।

आध्यात्मिक विचार - 21-5-2012


संसार में न कोई किसी का मित्र होता है और न ही किसी का शत्रु होता है। 

जो व्यक्ति तन से कभी अपने कर्तव्य-कर्मों का विरोध नहीं करता है और मन से निरन्तर भगवान का स्मरण करता है, वह व्यक्ति स्वयं का मित्र होता है। 

जो व्यक्ति मन से अपने कर्तव्य-कर्म का विरोध करता है और तन से भगवान की उपासना में लगा होता है वह व्यक्ति स्वयं का ही शत्रु होता है।

आध्यात्मिक विचार - 18-5-2012


वास्तविक उन्नति वह व्यक्ति कर पाता है, जो केवल स्वयं के दोषों को खोजने में सक्षम होता है।

जो व्यक्ति अनुकूलता में भगवान की कृपा, और प्रतिकूलता में केवल स्वयं को दोषी समझता है, वही व्यक्ति समस्त दोषों से मुक्त होकर अचल पद को प्राप्त होता है।

आध्यात्मिक विचार - 9-5-2012


प्रयत्न करना या प्रयत्न न करना केवल मन का कार्य होता है, और सुख और दुख केवल मन की अनुभूति होती है।

प्रयत्न करके प्राप्त सांसारिक वस्तुओं से दुख की अनुभूति होती है, और प्रयत्न किये बिना प्राप्त सांसारिक वस्तुओं से सुख की अनुभूति होती है।

आध्यात्मिक विचार - 7-5-2012


कोई भी कार्य अच्छा या बुरा नहीं होता है।
व्यक्ति की भावना अच्छी या बुरी होती हैं।
व्यक्ति जिस भावना से जो भी कार्य करता है, वह कार्य वैसा ही हो जाता है।

आध्यात्मिक विचार - 5-5-2012


शिक्षक के अधिकार से आचार्य का अधिकार दस गुना अधिक होता है, आचार्य के अधिकार से पिता का अधिकार सौ गुना अधिक होता है, लेकिन माता का अधिकार पिता के अधिकार से भी हजार गुना अधिक होता है।

आध्यात्मिक विचार - 4-5-2012


प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी कार्य का आरम्भ यह विचार करके ही करना चाहिये कि कार्य के अंत होने पर ही विश्राम करुंगा, अन्यथा वह कार्य ही उस व्यक्ति का अंत कर देता है।

आध्यात्मिक विचार - 3-5-2012


प्रकृति की प्रत्येक वस्तु से भय ही उत्पन्न होता है, जहाँ भय होता है वहाँ प्रेम नहीं हो सकता है।

आध्यात्मिक विचार - 19-4-2012


प्रेम ही एक मात्र ईश्वर की आराधना है, प्रेम ही ईश्वर की साधना का परम ज्ञान है, प्रेम के बिना मन से ईश्वर का ध्यान करना भी संभव नहीं है।

आध्यात्मिक विचार - 18-4-2012


प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में वह दिन व्यर्थ ही व्यतीत होते हैं, जिन दिनों में संतों की संगति प्राप्त नहीं होती है।

आध्यात्मिक विचार - 11-4-2012


सभी मनुष्यों का लक्ष्य आनन्द को प्राप्त करना है,श्रद्धा युक्त मनुष्य ही आनन्द प्राप्त कर पाता है।

श्रद्धा ही भक्ति का बीज है,श्रद्धा बिना भक्ति असंभव है,भक्ति बिना आनन्द की प्राप्ति असंभव है।

आध्यात्मिक विचार - 8-4-2012


जिस व्यक्ति को गुलमोहर की तरह झरना आ जाता है, जिस व्यक्ति को सूखे पत्ते की तरह गिरना आ जाता है।

अन्तिम समय उस व्यक्ति की आँखों में आँसू नहीं होते, क्योंकि वह जीना सीख जाता है, इसलिये उसे मरना भी आ जाता है।

आध्यात्मिक विचार - 7-4-2012


जिस प्रकार अग्नि को शान्त करने के लिये शीतल जल की अवश्यकता होती है, उसी प्रकार क्रोध रूपी अग्नि को शान्त करने के लिये प्रेम रूपी शीतल जल की आवश्यकता होती है।  

आध्यात्मिक विचार - 4-4-2012


जिस प्रकार घुन गेहूँ को खोखला कर देती है, उसी प्रकार ईर्ष्या व्यक्ति की बुद्धि को खोखला कर देती है।

आध्यात्मिक विचार - 28-3-2012


जिस प्रकार तन को भोजन से शक्ति प्राप्त होती है, उसी प्रकार मन को परमात्मा के भजन से शक्ति प्राप्त होती है।

आध्यात्मिक विचार - 26-3-2012


जो व्यक्ति निरन्तर स्वयं की वाणी को स्वयं सुनकर समझने का प्रयत्न करता है, वही व्यक्ति दूसरों को समझाने में सक्षम होता है।

आध्यात्मिक विचार - 15-3-2012


प्रेम किये बिना कोई भी व्यक्ति एक पल भी जीवित नहीं रह सकता है। 

जो व्यक्ति संसार से प्रेम करता है, वह सदैव चिंताओं से ग्रसित रहता है।

जो व्यक्ति ईश्वर से प्रेम करता है, वह सदैव चिंताओं से मुक्त रहता है।

आध्यात्मिक विचार - 13-3-2012


जो व्यक्ति कष्टों के प्राप्त होने पर भी मन से कष्टों का चिंतन नहीं करता है, केवल उसी व्यक्ति का जीवन सुखमय होता है।

आध्यात्मिक विचार - 12-3-2012


गलती हो जाना कोई गलती नहीं होती है, गलती हो जाने से डरना गलती होती है, जान बूझकर गलती करना बड़ी गलती होती है, और गलती से सीख न लेना सबसे बड़ी गलती होती है।

आध्यात्मिक विचार - 11-3-2012


जो व्यक्ति श्रद्धा सहित ईश्वर की भक्ति में एक समान रूप से स्थित रहता है, जिसके मन में अन्य किसी कार्य को करने की इच्छा नहीं होती है, जो कम और सुन्दर बोलने वाला और अधिक सुनने वाला होता है, वही व्यक्ति वास्तविक रूप में संत होता है। 

आध्यात्मिक विचार - 5-3-2012


मनुष्य शरीर स्वर्ण के किले के समान है, इस किले में मन, प्रभु का अत्यन्त सुन्दर मन्दिर है।

इस मन रूपी मन्दिर में प्रेम और सेवा के भाव रूप हीरे और मोतीयों की सीढ़ियाँ बना कर पहुँचा जाता है। 

जो व्यक्ति प्रेम और सेवा के भाव रूपी हीरे और मोतीयों को निरन्तर एकत्रित करता रहता है, उस व्यक्ति का मन रूपी मन्दिर में, एक दिन प्रभु से मिलन हो ही जाता हैं।

आध्यात्मिक विचार - 19-2-2012


अपेक्षा का भाव ही व्यक्ति की चिंता का मूल कारण होता है। 

आध्यात्मिक विचार - 06-01-2012


संसार में सभी मनुष्य देवता या असुर होते हैं।

प्रकृति के नियमों को जानकर कर्म करने वाले व्यक्ति देवता होते हैं, और प्रकृति के नियमों को बिना जाने कर्म करने वाले व्यक्ति असुर होते हैं।