आध्यात्मिक विचार - 10-12-2011


संसार में सभी मनुष्य एक समय में आसुरी या दैवीय स्वभाव में स्थित होकर ही कार्य करते है।  

जब व्यक्ति स्वयं के हित की भावना से कार्य करता है, तब वह आसुरी स्वभाव में स्थित होता है।

जब व्यक्ति दूसरों के हित की भावना से कार्य करता है, तब वह दैवीय स्वभाव मे स्थित होता है।

आध्यात्मिक विचार - 09-12-2011


उत्साह व्यक्ति को बलवान बनाता है, लेकिन अति उत्साह व्यक्ति को निर्बल बनाता है। 

उत्साहित व्यक्ति के लिए संसार में सब कुछ संभव होता है, लेकिन अति-उत्साहित व्यक्ति लिये संसार में सब कुछ असंभव होता है।

आध्यात्मिक विचार - 07-12-2011


गीता के अनुसार 

इन्द्रियाँ अत्यधिक प्रबल और वेगवान होती  हैं, जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को वश में करने का प्रयत्न करता है, उस विवेकी मनुष्य के मन को भी बल पूर्वक भटका देतीं है।

इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को अपनी समस्त इन्द्रियों का उपयोग हमेशा भगवान की सेवा के लिए करना चाहिये।

आध्यात्मिक विचार - 02-12-2011

सभी के आत्मा-स्वरुप गोकुल के राजा भगवान श्रीकृष्ण को यदि आपने अपने ह्रदय में धारण किया हुआ है तो इससे बढ़कर अन्य कोई सांसारिक और वैदिक कार्य नहीं हो सकते हैं।

आध्यात्मिक विचार - 01-12-2011


यदि फल (शब्द) अच्छा लगता है तो प्रत्येक व्यक्ति को केवल फल को खाने में (स्वभाव में ढालने में) समय का उपयोग करना चाहिये। 

यदि फल (शब्द) अच्छा नहीं लगता है तो उस फल (शब्द) को तुरन्त त्याग देना चाहिये (भूल जाना चाहिये)। 

फल (शब्द) किस वृक्ष (शास्त्र) का है, इसमें अपने समय को बर्बाद नहीं करना चाहिये, क्योंकि मनुष्य के लिये समय से बहुमूल्य अन्य कुछ नहीं होता है।