आध्यात्मिक विचार - 24-04-2015

जिस प्रकार गंगा में मिलकर सभी प्रकार के अपवित्र जल गंगा के समान पवित्र हो जाते हैं, 

उसी प्रकार कर्म प्रारम्भ करने से पहले समस्त कर्म-फलों को मन के द्वारा भगवान को समर्पित करने से समस्त कर्म पवित्र हो जाते हैं।