आध्यात्मिक विचार - 08-01-2011


मिथ्या वह होता जो सत्य जैसा प्रतीत होता है लेकिन सत्य नही होता है।

जिस प्रकार किसी भी वस्तु की परछाई सत्य प्रतीत होती है लेकिन सत्य नही हो सकती है, परछाईं का स्वरुप विकृत होता है, उसी प्रकार भौतिक संसार आध्यात्मिक संसार की परछाई मात्र है इसलिये संसार मिथ्या है यह सत्य नही हो सकता है।

इसी लिये संसार में प्रेम का स्वरुप भी विकृत होता है, प्रेम करने के योग्य एक मात्र ईश्वर ही हो सकता है क्योंकि ईश्वर ही एक मात्र सत्य है।