आध्यात्मिक विचार - 10-02-2011

भगवान की भक्ति तो परम-प्रेम रूप, अमृत स्वरूप है, जिसे प्राप्त कर मनुष्य तृप्त हो जाता है, सिद्ध हो जाता है, अमर हो जाता है।

प्रत्येक व्यक्ति के लिये भगवान की भक्ति तो विशुद्ध प्रेम स्वरूप होती है, जिसे प्राप्त करके व्यक्ति परम-पद पर स्थिर हो जाता है।