भगवान के प्रति निर्मल-चित्त, दृड़-श्रद्धा और सच्ची-आस्था होने पर भजन स्वयं होने लगता है।
व्यक्ति का सम्पूर्ण विश्वास जब तक भगवान में नहीं होता है तब तक न तो चित्त निर्मल होता है और न ही श्रद्धा दृड़ हो पाती है।
भजन सदैव गोपनीय होता है भजन के लिये किसी भी बाह्य आडंबर करने की आवश्यकता नही होती है।