आध्यात्मिक विचार - 25-02-2011

मन से भगवान को केवल अपना समझना, भगवान पर अपना सब कुछ छोड़ देना, एक क्षण भी भगवान को भूल जाने पर अधीर हो जाना और भगवान की खुशी को अपनी खुशी समझना ही शुद्ध-भक्ति हैं।

इस अवस्था में किये जाने वाला कोई भी कार्य संसारिक बन्धन उत्पन्न नहीं कर पाता है।