आध्यात्मिक विचार - 11-03-2011


धर्म के अनुसार व्यवहार करना ही परमार्थ का मार्ग है, धर्म का आचरण न करने से व्यवहार और परमार्थ दोनों ही बिगड़ जाते हैं।

स्वयं की अवस्था को जानकर शास्त्रों के अनुसार कर्तव्य-कर्म करना ही धर्म कहलाता है, धर्म का आचरण करना ही धर्माचरण कहलाता है।

जो व्यक्ति धर्म के अनुसार अपने कर्तव्य-कर्म का आचरण नहीं करता है, वह न तो संसार के प्रति व्यवहारिक होता है और न ही परमार्थ ही कर पाता है।