हर व्यक्ति के लिये दूसरों की हित की कामना करना और भगवान को निरन्तर याद करते रहना यह दो कर्म ही व्यक्ति को मनुष्य बनाते हैं।
यदि कोई व्यक्ति यह दो कर्म नहीं करता हैं तो वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं होता है, बल्कि ऎसा व्यक्ति मनुष्य शरीर में पशु-पक्षीयों के समान ही होता है।