आध्यात्मिक विचार - 08-04-2011


मन से निरन्तर परमात्मा का चिंतन और तन से निरन्तर "नियत-कर्म" करने वाले को शीघ्र ही परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है।

तन से निरन्तर नियत-कर्म करने से पूर्व जन्मों के संस्कारों से उत्पन्न कर्म बन्धन से मुक्ति मिलती है।

मन से निरन्तर परमात्मा के चिंतन से नये संस्कारों की उत्पत्ति नहीं होती है, संस्कारों का न बनने से नये कर्म-बन्धन से मुक्ति मिलती है।