॥ अमृत-वाणी - २ ॥



धर्मानुसार कार्य करने पर वही कार्य होगें, जिनसे वर्तमान में मन को आनन्द मिलेगा और भविष्य में परमानन्द स्वरुप की प्राप्ति होगी।
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एकान्त में रह कर ही शान्ति का अनुभव होगा, यदि एकान्त में न रह सको तो अच्छे लोगों का संग करो और बुरे लोगों के संग से दूर रहो।
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मन की शुद्धि निष्काम-भाव (बिना फ़ल की इच्छा) से कार्य करने से ही होगी, सकाम-भाव (फ़ल की इच्छा) से मन की शुद्धि कभी नही होगी।
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मनुष्य जीवन में संगति का सबसे अधिक प्रभाव पडता है, पाप कर्म से बचना चाहते हो तो दुष्ट स्वभाव वालों की संगति से हमेशा दूर रहो।
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सत्संग के बिना परमात्मा को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न नहीं होती है, जब तक जिज्ञासा उत्पन्न नही होगी तब तक भगवान की प्राप्ति असंभव है।
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संसार से प्रेम करने से दुख के अलावा और कुछ नही मिलता है, परमात्मा से प्रेम करने से ही आनन्द की प्राप्ति होगी।
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जो समय का मूल्य जानेगा वही समय का सदुपयोग कर पायेगा, संसार में समय से अधिक मूल्यवान वस्तु और कोई नही है।
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जगत से प्रेम करोगे तो जन्म-मरण के चक्कर में पडे रहोगे, जगदीश से प्रेम करोगे तो जन्म-मरण से मुक्त को जाओगे।
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जीवात्मा अज्ञानता के कारण चाहता कुछ है और इच्छा किसी अन्य की करता है, जैसी इच्छा करते हो वैसा ही प्राप्त करते हो।
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सांसारिक वस्तु का चिन्तन करोगे तो चिन्ताओं से ग्रस्त रहोगे, भगवान का चिन्तन करोगे तो सभी चिन्ताओं से मुक्त हो जाओगे।
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मनुष्य जीवन का एक मात्र उद्देश्य माया-पति की शरण में जाकर माया को पार करके भगवान की अनन्य भक्ति प्राप्त करना होता है।
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स्वयं को कर्ता मान कर कार्य करने से सकाम-कर्म होता है, और स्वयं को अकर्ता मान कर कार्य करने से निष्काम-कर्म होता है।
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ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास न करो, अज्ञानता दूर करने का प्रयत्न करो, अज्ञानता दूर होते ही एक दिन ज्ञान स्वयं प्रकट हो जायेगा।
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सकाम-भाव से कार्य करते रहोगे तो संसारिक बंधन में बंधे रहोगे, निष्काम-भाव से कर्म करने पर ही भगवान की भक्ति प्राप्त कर सकोगे।
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जो निर्गुण-निराकार है उसे सगुण-साकार करने का प्रयत्न करो, परमात्मा निर्गुण-निराकार भी है और वही परमात्मा सगुण-साकार भी है।
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