॥ अमृत-वाणी - ३ ॥


जब तक स्वयं को कर्ता मान कर कार्य करते रहोगे तो बंधन में ही फ़ंसे रहोगे, और अकर्ता बन कर कर्म करोगे तो बंधन से मुक्त हो जाओगे।
*******
फ़ल की इच्छा से कार्य करने से सकाम-भाव की उत्पत्ति होती है, और फ़ल की इच्छा के बिना कार्य करने से ही निष्काम भाव की उत्पत्ति होती है।
*******
स्वभाव का अर्थ होता है अपना भाव, केवल भाव ही अपना है और भाव ही सबसे बलवान है, इस भाव से ही अप्रकट परमात्मा भी प्रकट कर सकते हो।
*******
पदार्थ (अनित्य वस्तु) वह होता जिसका रुप और आकार बदल जाता है, तत्व (नित्य वस्तु) वह होता जिसका रुप और आकार कभी नही बदलता है।
*******
दूसरों को जानने का प्रयत्न करते रहोगे तो स्वयं को कभी नही जान पाओगे, स्वयं को जानने का प्रयत्न करोगे तो एक दिन परमात्मा को भी जान जाओगे।
*******
अपनी सभी वासना (इच्छा) रूपी धागों को इकट्ठा करके भगवद्-इच्छा रूपी मोटी रस्सी तैयार करो, इसी रस्सी के सहारे भव-कूप (संसार) से बाहर निकलने का प्रयत्न करो।
*******
जीवन में शान्ति चाहते हो तो सांसारिक व्यवहार में मन को मत फँसाओ, मन को भगवान में लगाने का प्रयत्न करो, भगवान में मन लगने पर ही मन शान्त होगा।
*******
संसार के चिंतन से मन अशुद्ध होता है, परमात्मा के चिंतन से मन शुद्ध होता है मन के पूर्ण शुद्ध होने पर ही नित्य अविनाशी आनन्दस्वरूप परमात्मा प्रकट होता है।
*******
जो कुछ भी दिखाई देता है वह सब अनित्य वस्तु (संसार) है, और जो दिखाई नही देता वह नित्य वस्तु है नित्य वस्तु (परमात्मा) का ही अस्तित्व है, अनित्य वस्तु का कोई अस्तित्व नही है।
*******
भगवान की माया (धन, सम्पदा और परिवार) को प्राप्त करने की इच्छा मत करो, माया-पति (भगवान) को पाने की इच्छा करोगे तो माया तो पीछे स्वयं ही चली आयेगी, क्योंकि माया तो भगवान की एक पतिव्रता स्त्री के समान है।
*******
परमात्मा से कुछ भी प्राप्त करने की इच्छा ही परमात्म-सिद्धि को प्राप्त करने में सबसे बडी बाधा है।
*******
केवल लक्ष्मी के भक्त न बनकर लक्ष्मी-नारायण के भक्त बनोगे, तो लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहेगी।
*******
क्षणभंगुर सांसारिक स्वार्थों में ही लिप्त रहोगे तो जीवन में भगवान की कृपा-सिद्धि को कैसे प्राप्त कर पाओगे।
*******
मन में क्षणभंगुर संसार का विचार कम करने से कामनायें सिमटने लगेंगी, और मन भगवान में लगने लगेगा।
*******
संसार में कमल के पत्ते की तरह रहो, जिस प्रकार कमल का पत्ता जल में रहते हुए जल का स्पर्श नही करता है।
*******