॥ अमृत-वाणी - ५ ॥



भक्ति-मार्ग में प्रवेश तभी मिलता है जब जीव को भगवान की कृपा से ब्रह्मज्ञान प्राप्त हो जाता है।
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जैसे लोगो के संगति करोगे वैसा स्वभाव बनेगा और वैसे ही कर्म होंगे और वैसा ही फ़ल पाओगे।
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अनन्य भाव से सर्वत्र सर्वव्यापी परमात्मा को देखने की दृष्टि मिलने पर ही भक्ति-मार्ग पर प्रवेश होता है।
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ज्ञान (लिखित) जब तक विज्ञान (अनुभव) में परिवर्तित नही होगा तब तक आनन्द की प्राप्ति नही होगी।
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ज़ड प्रकृति में सुख-दुख की, चेतन प्रकृति में आनन्द की और परमात्मा में ही परम-आनन्द अनुभूति होती है।
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भय प्रकृति में होता है, परमात्मा तो अभय सत्ता है, शरीर प्रकृति से मिला है और आत्मा परमात्मा से मिली है।
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स्वधर्म के आचरण से ही सुख एवं शान्ति मिलती है, धर्म-विरुद्ध आचरण से दुख और अशान्ति ही प्राप्त होगी।
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सभी के कर्मों को जो जानता है वही परमात्मा अन्तर्यामी है उसकी दृष्टि से बचकर कोई कार्य नही हो सकता है।
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जब तक प्रत्येक व्यक्ति धर्म के अनुसार आचरण नही करेगा तब तक स्वच्छ समाज की स्थापना नही हो सकती है।
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परमात्मा कण-कण में व्याप्त है जब तक सर्वत्र परमात्मा की अनुभूति नही होती है तब तक अज्ञान बना ही रहता है।
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पूजा, उपासना, भजन, चिंतन जब तक निष्काम भाव से नही करोगे तब तक परमात्मा की कृपा मिलना असंभव है।
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संसार में भौतिक विकास ही अशान्ति का मुख्य कारण है, भौतिक संयोग से क्षणिक सुख और वियोग से चिर दुख होता है।
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विश्व में जितना अधिक भौतिक विकास होगा उतनी ही भौतिक वस्तु में आशक्ति होगी, उतनी अधिक विश्व में अशान्ति बढेगी।
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भौतिक विकास के लिये बुद्धि का उपयोग करोगे तो जीवन का दुरूपयोग होगा, परमात्मा के लिये बुद्धि का उपयोग करोगे तो जीवन का सदुपयोग होगा।
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प्रत्येक व्यक्ति को भक्ति-मार्ग में प्रवेश पाने के लिये ही कर्म करने चाहिये, जिसे भक्ति मार्ग में प्रवेश मिल गया है केवल उसी की यात्रा सही दिशा में हो रही है।
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