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श्रीमद् भगवद् गीता
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जिसप्रकार भृंगी नाम का कीड़ा भंवरे का चिन्तन करते-करते भंवरा बन जाता है उसीप्रकार जीव भगवान का चिंतन करते-करते भगवान के दिव्य स्वरूप को प्राप्त हो जाता है।
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