आज का विचार

भगवान निर्गुण-निराकार स्वरूप भी हैं तो सगुण-साकार स्वरूप भी हैं।
भगवान का निर्गुण-निराकार स्वरुप के चिंतन करने से परमात्मा का सगुण-साकार स्वरुप के चिंतन करना श्रेष्ठ होता हैं।
क्योंकि निर्गुण-निराकार स्वरूप से प्रेम नहीं हो सकता है, प्रेम तो सगुण-साकार स्वरूप से ही हो सकता है और भगवान की प्राप्ति केवल प्रेम से होती है।