आध्यात्मिक विचार - 16/12/2010


जो व्यक्ति निरन्तर सत्संग (सत्य की संगति = प्रभु चिंतन) नहीं करता है तो असंग (असत्य की संगति=सांसारिक चिंतन) से वह व्यक्ति घिर जाता हैं।
जब व्यक्ति निरन्तर सत्संग नहीं करता है तब उसे असंग होने लगता है, क्योंकि निरन्तर सत्संग करने पर ही व्यक्ति को अपने वास्तविक स्वरूप का बोध हो पाता है।
जब तक वास्तविक स्वरूप का बोध नहीं होता है तब तक सांसारिक आसक्ति (मोह) का छूट पाना असंभव होता है।