विचार - 15/12/2010


प्रत्येक व्यक्ति को सुख और दुख की अनुभूति दो प्रकार से ही होती है।
१. शारीरिक रूप से
२. मानसिक रूप में
शारीरिक रूप से जो सुख-दुख की अनुभूति पूर्व जन्मों के कर्मों के परिणाम के कारण होती है, और मानसिक सुख दुख की अनुभूति वर्तमान जीवन के कर्म के परिणाम के कारण होती है।
वर्तमान जीवन के मानसिक सुख-दुख अगले जीवन के शारीरिक सुख-दुख में परिवर्तित हो जाते है, जो इस जीवन में शारीरिक सुख-दुख प्राप्त हो रहे हैं, वह पिछले जीवन के मानसिक सुख-दुख थे, इसी सुख-दुख को "प्रारब्ध" कहा जाता है।