आध्यात्मिक विचार - 19-02-2011


प्रत्येक व्यक्ति दूसरों के गुण और दोषों को स्वत: ही ग्रहण करता है।

जब व्यक्ति दूसरों की निन्दा करते हुए उनके दोषों का चिन्तन करते है तो दूसरो के दोष उस व्यक्ति में स्वत: ही प्रवेश कर जाते है।

जब व्यक्ति दूसरों की प्रशंसा करते हुए उनके गुणों का चिंतन करते हैं तो दूसरों के गुण उस व्यक्ति में स्वत: ही प्रवेश कर जाते है।