जब व्यक्ति दूसरों की निन्दा करते हुए उनके दोषों का चिन्तन करते है तो दूसरो के दोष उस व्यक्ति में स्वत: ही प्रवेश कर जाते है।
जब व्यक्ति दूसरों की प्रशंसा करते हुए उनके गुणों का चिंतन करते हैं तो दूसरों के गुण उस व्यक्ति में स्वत: ही प्रवेश कर जाते है।