संसार में कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का स्वभाव परिवर्तन नहीं कर सकता है, जब तक कि व्यक्ति स्वयं बदलने की इच्छा करके बदलने का अभ्यास न करे।
स्वभाव परिवर्तन से कर्म परिवर्तित हो जाता है और कर्म के परिवर्तन से कर्म-फल स्वतः ही परिवर्तित हो जाते हैं।