आध्यात्मिक विचार - 06-04-2011


जो व्यक्ति निरन्तर सत्संग यानि सत्य की संगति यानि प्रभु का चिंतन नहीं करता है तो असंग यानि असत्य की संगति यानि सांसारिक चिंतन स्वतः ही होने लगता हैं।

जब व्यक्ति निरन्तर सत्संग करता है तब उस व्यक्ति को स्वयं के वास्तविक स्वरूप का बोध होने लगता है।

जब तक व्यक्ति को स्वयं के वास्तविक स्वरूप का बोध नहीं होता है तब तक सांसारिक आसक्ति से छूट पाना असंभव होता है।