जिस प्रकार किसी भी व्यक्ति को उसके रंग-रूप, वाणी या पहनावा से नही जाना जा सकता है, केवल स्वभाव से ही जाना जा सकता है।
उसी प्रकार साधु और संतों को भी उनके रंग-रूप, वाणी या पहनावा से नही जाना जा सकता है, केवल रहन-सहन और उनके स्वभाव से ही जाना जा सकता है।
साधु वह होता है, जिसने शरीर को साधन बनाकर साधना द्वारा एक मात्र परमतत्व-परमात्मा को साध लिया है और संत वह होता है जिसकी मन सहित सभी इन्द्रियाँ शान्त हो चुकी हैं।