आध्यात्मिक पथ पर प्रवेश चाहने वाला व्यक्ति जब तक स्वयं को शरीर समझता रहता है, तब तक उस व्यक्ति को आध्यात्मिक पथ पर प्रवेश ही नहीं मिलता है।
आध्यात्मिक पथ पर प्रवेश चाहने वाला व्यक्ति जब स्वयं की पहिचान बाहरी स्वरूप शरीर से न करके अपने आन्तरिक स्वरूप जीवात्मा के रूप में करने लगता है, तभी उसकी आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ हो पाती है।
व्यक्ति का शरीर दीपक के समान होता है, आत्मा ज्योति के समान होती है और परमात्मा परम-ज्योति स्वरूप हैं। एक दीपक कभी भी दूसरे दीपक में नहीं मिल सकता है, लेकिन एक ज्योति दूसरी ज्योति में मिल सकती है।