आध्यात्मिक विचार - 28-04-2011


संतोष अमृत के समान होता है, असंतोष विष के समान होता है।

संतोष आनन्द स्वरूप परमात्मा की ओर आकर्षित करता है, असंतोष विष स्वरूप विषय भोगों की ओर आकर्षित करता है।

संतुष्ट स्वभाव वाला व्यक्ति ही आनन्द स्वरूप परमात्मा को प्राप्त कर अमर हो जाता है, असंतुष्ट स्वभाव वाला व्यक्ति पुनर्जन्म को प्राप्त होकर विषय भोगों में ही लिप्त रहता है।