जब तक व्यक्ति माया को पकड़ने के लिये माया के पीछे दौड़ता रहता है तब तक माया आगे-आगे चलती रहती है, वह पकड़ में नहीं आती है।
जब व्यक्ति माया का पीछा छोड़कर माया के पति के पीछे दौड़ने लगता है तब माया उस व्यक्ति के पीछे-पीछे चलने लगती है।
माया तो एक पतिव्रता स्त्री है, वह उसी को प्रेम करती है जो उसके पति को प्रेम करता है, तब वह योगमाया का रूप धारण करके अपने पति से योग (मिलन) करा देती है।