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आध्यात्मिक विचार - 11-02-2014
प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही अपना मित्र और स्वयं ही अपना शत्रु होता है।
जब व्यक्ति दूसरों के सुखों का विचार करता है तब वह स्वयं का मित्र होता है, जब व्यक्ति अपने सुख का विचार करता है तब वही स्वयं का शत्रु होता है।
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