अपने कर्तव्यों का ज्ञान न होने के कारण मनुष्य अधर्म के पथ पर ही चलता है।
मनुष्य के जीवन में जब-जब वस्तुओं का महत्व बढ़ने लगता है, तब-तब संबन्धों का महत्व कम होने लगता है, और जब संबन्धों पर वस्तुओं का महत्व अधिक हो जाता है, तभी मनुष्य अपने कर्तव्यों से विमुख होकर अधर्म के पथ पर चलने लगता है।