संत की पहिचान सांसारिक और आध्यात्मिक दो दृष्टिकोणों से होती है।
जो व्यक्ति स्वयं कष्ट झेलकर दूसरों को सुख देने का निरन्तर प्रयत्न करता है, ऎसे व्यक्ति की पहिचान सांसारिक दृष्टिकोण से संत रूप में होती है।
जिस व्यक्ति की समस्त कामनायें परमात्मा का स्पर्श प्राप्तकर शान्त हो चुकी हैं, ऎसे व्यक्ति की पहिचान आध्यात्मिक दृष्टिकोण से संत रूप में होती है।