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श्रीमद् भगवद् गीता
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समर्पण
आज का विचार
जिस प्रकार नदियाँ अपना जल स्वयं नहीं पीती हैं, वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं, खेत अपने द्वारा उगाया हुआ अनाज स्वयं नहीं खाते हैं, उसी प्रकार संत पुरूषों का जीवन दूसरों के लिए ही होता है।
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