आध्यात्मिक विचार - 14/12/2010


अन्त मति सो गति!

व्यक्ति जीवन के आखिरी क्षण में जिस रूप का स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, तो अगले जन्म में उसी शरीर को प्राप्त होता है।

हर व्यक्ति जीवन में किसी न किसी रूप के प्रति आसक्त अवश्य होता है, चाहे स्त्री हो या पुरुष, पशु हो या पक्षी, भूत हो या प्रेत, देवी हो या देवता आदि किसी का भी स्मरण करते हुए शरीर का त्याग करता है तो अगले जन्म में उसी शरीर को प्राप्त होता है।

परन्तु, जो व्यक्ति जीवन में केवल भगवान के किसी भी एक रूप के प्रति आसक्त होता है तो वह भगवान को ही प्राप्त होता है, यही मनुष्य जीवन की परम-सिद्धि होती है।

हर व्यक्ति को अपने अन्तिम क्षण की तैयार में लग जाना चाहिये, जो इस बात को समझकर स्वयं को समझा लेता है तो उसको मृत्यु प्रिय लगने लगती है, जिसे मृत्यु प्रिय लगती है, वह सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है।