आध्यात्मिक विचार - 24-01-2011

व्यक्ति का ज्ञान स्वभाव के कारण कामनाओं से घिरकर माया के प्रभाव से आज्ञान से आवृत हो जाता है, अज्ञान से आवृत होने के कारण ही वह क्षणिक सुख के लिये घोर कष्ट उठाता रहता है।

जबकि हर व्यक्ति यह जानता है सुख स्थिर रहने में है लेकिन वह स्वयं को दूसरों से अधिक ज्ञानी समझकर प्रतिस्पर्धा के कारण निरन्तर दौड़ लगाता रहता है और स्वयं की शक्ति को नष्ट करता रहता है।

जब व्यक्ति अपनी बुद्धि के द्वारा मन को स्थिर कर लेता है तब तन भी स्थिर हो जाता है, और जब तन और मन दोनों स्थिर हो जाते हैं तब व्यक्ति को कभी न समाप्त होने वाले आनन्द की प्राप्ति होती है।